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“एक तो जलती गर्मी, ऊपर से बिजली कटौती की बला”

स्याही का साहस...
स्याही का साहस...
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wires2
मई का महीना चढ़ते ही,
सूरज है आग बरसाता,
और शुरू होती हैं गर्मी की छुट्टियाँ,
तो लगता हर घर में मेहमानों का तांता,
कुछ तो जाते नानी-दादी के पास,
गाँव में सुकून के पल बिताने…
कुछ आते हैं हमारे कानपुर शहर में,
मज़े से छुट्टियाँ बिताने …
लग गया मेरे आस पास भी जलसा
मचने लगा हल्ला..
सुबह पानी के ताक में जब
उठ खड़ा हुआ सारा मोहल्ला..
पूछा मैंने काकी से,
इतनी भी क्या जल्दी?
बोली परेशान हो “बेटी क्या करूँ?”
“यह बिजली अभी है अभी चलदी”..
मैं हँसी यह सोच कर
कब ये सरकार हमारी पीड़ा देख पायेगी,
गर्मी में खड़े होकर रसोई में,
क्या माँ की तरह रोटियां सेंक पाएगी?
भरी दोपहरी गूँज रही थी,
घरों में हंसी-ठिठोली,
पसीने से बदहाल सब छज्जों पर खटिया बिछाए,
और बिजली रानी खेले आँख मिचोली..
राह ताकते सब लाइट की,
कब मेहेरबानी दिखाए,
सुबह से लू के थपेड़े झेल रहे,
कूलर की हवा से सुकून आये…
शाम हुई, सूरज ढला,
पर गर्मी ने नही खोया जोश….
बिजली का कोई अता पता नहीं,
सब खोने लगे अपने होश…
सब हुए परेशान…
बिन बिजली सारा दिन कट गया है..
तभी बोला छोटू-” न रखो उम्मीद बिजली आने की”
क्योंकी एरिया का ट्रांसफार्मर फट गया है!”
बगल वाली काकी ने पटका माथा,
कहती “अभी कितना काम है पड़ा!”
चिलचिलाती गर्मी में बिजली ने मिले..
“एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा!”
मैंने कहा काकी से
कानपुर शहर का तो यही है सिलसिला!…..
पर मिसाल अलग है यहाँ पर लागू,
“एक तो जलती गर्मी, ऊपर से बिजली कटौती की बला”!!!!…….

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