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कितनी सुरक्षित है स्त्री????

स्याही का साहस...
स्याही का साहस...
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क्या स्त्री आज एक मांस का टुकड़ा बन के रह गयी है?
जिसकी कोई इज्ज़त, कोई आबरू नहीं है?
आज हर लड़की अपने घर से निकलने से पहले न जाने कितने सवाल, कितने खौफ अपने मन में सोचती होगी
क्यूंकि आज स्त्री की पूजा नहीं, उसका अपमान होता है
समाज उसे एक खिलौने की तरह इस्तेमाल करता है
आखिर क्यों बढ़ता जा रहा है ये भयानक खेल?
कब तक नारी इन दर्द भरी चीखों से झूझती रहेगी ?
खुलेआम छेड़छाड़ तो अब मामूली बात रह गई है , पर आज घज़ाबाद के माल में हुई शर्मनाक हरकत का कोई कानून व्यवस्था क्या जवाब देगी?
क्या सार्वजनिक स्थलों में भी नारी सुरक्षित नहीं है?
सब आँख मूँद कर क्यूँ बैठे हैं ?
बच्चियां, महिलाएं कोई भी इन दरिंदों से सुरक्षित नहीं है.. क्या यही वह देश जहाँ नारी को देवी का रूप मन जाता है ?
“यत्र नायॆस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”
शायद इसका मतलब सब भूल चुके हैं..
क्यों नहीं रूकती ये असुरता? कब तक रोटी रहेगी हर घर की बेटी?
क्या सो रहा है कानून? तो हमे उसे जगाना होगा?
नारी को उसका सम्मान वापिस दिलाना होगा….

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